सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 24 नवंबर को, पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने कहा - असहमति को दबाने की सुनियोजित कोशिश


 नई दिल्ली। पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तारी को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में नई बहस छिड़ गई है। जलवायु कार्यकर्ता की पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर संशोधित याचिका में कहा कि उनके पति की गिरफ्तारी ‘‘लोकतांत्रिक और संवैधानिक असहमति को कुचलने की सुनियोजित कोशिश’’ है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर के लिए तय की है।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने याचिकाकर्ता आंग्मो की संशोधित याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी किया है। अदालत ने कहा कि संशोधित याचिका एक सप्ताह में दाखिल की जाए और केंद्र व केंद्रशासित प्रदेश दस दिनों में अपना जवाब दें। अदालत ने rejoinder दाखिल करने के लिए भी एक सप्ताह का समय दिया है।

गीतेन्जली आंग्मो ने अदालत के समक्ष कहा कि उनके पति के खिलाफ लागू एनएसए की प्रक्रिया में ‘‘गंभीर और असुधार्य खामियां’’ हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘गिरफ्तारी के 28 दिन बाद ही हिरासत के आधार बताए गए, जो कानून द्वारा निर्धारित समयसीमा का उल्लंघन है।’’ उन्होंने तर्क दिया कि यह देरी अपने आप में वांगचुक की निरंतर हिरासत को अवैध बनाती है।

याचिका में कहा गया है कि एनएसए के तहत गिरफ्तारी के बाद आवश्यक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया गया। आंग्मो ने कहा कि ‘‘यह मामला केवल एक व्यक्ति की आज़ादी का नहीं, बल्कि उस संवैधानिक अधिकार का है जो हर नागरिक को शांतिपूर्ण असहमति दर्ज करने की अनुमति देता है।’’ उन्होंने अदालत से मांग की कि वांगचुक की हिरासत को रद्द किया जाए और उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।

सोनम वांगचुक, जो अपने गांधीवादी आंदोलन और पर्यावरणीय चेतना के लिए पहचाने जाते हैं, को 26 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया था। इस हिंसा में चार लोगों की मौत और अस्सी से अधिक घायल हुए थे। पुलिस ने दावा किया कि वांगचुक ने हिंसक प्रदर्शन को उकसाया, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि वे केवल ‘‘शांतिपूर्ण धरने’’ का हिस्सा थे।

वांगचुक को गिरफ्तारी के बाद राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया, जो लद्दाख से लगभग 1000 किलोमीटर दूर है। उनकी पत्नी ने इस स्थानांतरण को भी अदालत में चुनौती दी है, इसे ‘‘परिवार और कानूनी टीम से अलग करने की रणनीति’’ बताया है।

आंग्मो की याचिका में कहा गया है कि वांगचुक के खिलाफ की गई कार्रवाई ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था’’ से नहीं जुड़ी, बल्कि ‘‘उनकी पर्यावरणीय और लोकतांत्रिक मुहिम को दबाने के लिए रची गई साजिश’’ है। उन्होंने अदालत को बताया कि गिरफ्तारी से पहले उनके पति के एनजीओ की विदेशी फंडिंग सर्टिफिकेट रद्द कर दी गई थी और कई अन्य ‘‘दमनकारी कदम’’ उठाए गए थे।

याचिका में यह भी कहा गया है कि लद्दाख की पारिस्थितिकी, ग्लेशियरों और पहाड़ों की रक्षा के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को ‘‘देशद्रोही करार देने की संगठित कोशिश’’ की गई है। आंग्मो ने कहा, ‘‘कुछ शक्तियां यह झूठा नैरेटिव फैला रही हैं कि वांगचुक का पाकिस्तान और चीन से संबंध है, ताकि उनके शांतिपूर्ण गांधीवादी आंदोलन को बदनाम किया जा सके।’’

अदालत में पेश वकीलों ने तर्क दिया कि वांगचुक की गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ‘‘यह गिरफ्तारी न केवल गैरकानूनी है बल्कि एक मिसाल बन सकती है, जो आगे चलकर असहमति की हर आवाज को खामोश करने के लिए इस्तेमाल होगी।’’

लद्दाख में पिछले कुछ महीनों से राज्य का दर्जा बहाल करने और क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से क्षेत्र के पर्यावरण और पारंपरिक स्वायत्तता पर खतरा बढ़ा है। इन्हीं मुद्दों को लेकर वांगचुक ने शीतकालीन उपवास और शांतिपूर्ण धरने का नेतृत्व किया था।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि वांगचुक के खिलाफ चलाया गया ‘‘सिस्टेमेटिक कैंपेन’’ राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है। आंग्मो ने अदालत को बताया कि उनके पति ने कभी हिंसा या उकसावे का सहारा नहीं लिया, बल्कि वे केवल ‘‘संविधानसम्मत तरीके से’’ जनता की आवाज़ को सामने ला रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पति ने कभी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में भाग नहीं लिया। वे तो वह व्यक्ति हैं जिसने पूरी दुनिया को सिखाया कि कैसे सौर ऊर्जा और स्थानीय संसाधनों से लद्दाख को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।’’

गौरतलब है कि यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब देश में एनएसए जैसे कड़े कानूनों के दुरुपयोग पर व्यापक बहस जारी है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि एनएसए के तहत बिना मुकदमे के लंबे समय तक किसी को हिरासत में रखना ‘‘लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ’’ है।

वहीं, सरकारी सूत्रों का कहना है कि ‘‘वांगचुक के आंदोलन ने क्षेत्र में तनाव और हिंसा को भड़काया, जिससे प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए यह कार्रवाई आवश्यक थी।’’ हालांकि, अदालत ने अभी इस दावे पर कोई टिप्पणी नहीं की है और कहा है कि वह केवल ‘‘कानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन और गिरफ्तारी की वैधता’’ पर विचार करेगी।

अब सभी की नज़रें 24 नवंबर पर टिकी हैं, जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा। यह सुनवाई न केवल एक व्यक्ति की रिहाई का मामला है, बल्कि यह भी तय करेगी कि लोकतंत्र में असहमति की आवाज़ कितनी सुरक्षित है।

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