रांची, झारखंड | संवाद विशेष
रांची में इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन से जुड़े पत्रकारों पर हुआ हमला सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की गिरती स्थिति की गंभीर चेतावनी है। रांची प्रेस क्लब के महासचिव अमरकांत के साथ हुई बदसलूकी और संजीत कुमार पर जानलेवा हमला, दोनों ही घटनाएं पुलिस की मौजूदगी में हुईं, जो प्रशासनिक निष्क्रियता को उजागर करती हैं।
प्रदेश अध्यक्ष देवानंद सिन्हा ने इस हमले की तीखी आलोचना करते हुए प्रशासन से तत्काल गिरफ्तारी और कार्रवाई की मांग की। मधु सिन्हा ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तो राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा।
“पत्रकार केवल खबरें नहीं लिखते, वे जनता की आवाज़ होते हैं,” – यह बात प्रदेश सचिव विजय दत्त पिंटू ने उठाई, जो इस घटना को लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं। रांची जिला अध्यक्ष विपिन कुमार सिंह ने भी इसी तर्ज पर कहा, “एक पत्रकार पर हमला, लोकतंत्र की रीढ़ पर वार है।”
यह घटना फिर इस सवाल को जन्म देती है — क्या भारत में प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा अब भी संभव है? पत्रकार समुदाय के सामने आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है।