मनोज ने सुबह 9:30 बजे थाने में जाकर खुद को आत्मसमर्पण कर दिया। उसके पास तमंचा था और आंखों में अपराध की धुंध। पूछने पर सिर्फ यही कहा—"उसने (बीना ने) कहा था, अगर मारा नहीं तो वापस मत आना"।
हत्या के पीछे महज़ एक बार का आवेश नहीं था। यह सालों से पक रही साजिश थी। बीना ने एक नहीं, कई बार मनोज को पुलिस से बचाया। मोहल्ले की पंचायतें, दिल्ली की होटल में गिरफ्तारी, गांव में आपत्तिजनक हालत में पकड़ा जाना—सब कुछ हुआ। मगर हर बार बीना सामने आई और उसे छुड़वा लाई।
हत्या की सुबह बीना ने तीनों बच्चों को जबरन स्कूल भेजा—ताकि साक्षी न रहें। फिर पति को घर से बाहर बुलाया—"थोड़ी देर बैठ लो चबूतरे पर", और मनोज को इशारा किया—"अब जा..." गोली चली। एक नहीं, दो—और सुरेश की सांसें सदा के लिए थम गईं। प्यार अंधा होता है — ये कहावत अब अपराध की गवाही बन चुकी है। मोहल्ला कोठी में जब बीना और मनोज के रिश्ते का राज खुला, तो गांव वालों ने एक नहीं, तीन बार पंचायत बुलाई। हुक्म सुनाया गया — अलग हो जाओ, समाज बर्बाद हो जाएगा।
मगर जब प्रेमी की दुकान घर से बीस कदम दूर हो, और पत्नी हर रात परिवार को बेहोश कर प्रेमी को घर बुलाए — तो पंचायतें क्या कर सकती हैं?
