अडानी डिफेंस पर 9 मिलियन डॉलर की आयात शुल्क चोरी के आरोप में डीआरआई की जांच से खलबली

 


नई दिल्ली. देश की जानी-मानी औद्योगिक कंपनी अडानी समूह एक बार फिर सरकारी जांच के घेरे में है. इस बार मामला उसकी रक्षा इकाई अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज से जुड़ा है, जिस पर लगभग मिलियन डॉलर यानी करीब 75 करोड़ रुपये के आयात शुल्क की चोरी के आरोप लगे हैं. यह जांच राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा मार्च में शुरू की गई थी और अब इसने पूरे रक्षा उद्योग और कारोबारी हलकों में नई हलचल मचा दी है.

सूत्रों के मुताबिक, जांच एजेंसी को संदेह है कि अडानी डिफेंस ने मिसाइल से जुड़े पुर्जों के आयात में गलत वर्गीकरण (misclassification) किया, जिससे कंपनी को आयात शुल्क और स्थानीय कर से छूट मिल गई. दो वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि कंपनी ने शॉर्ट-रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (Short Range Surface-to-Air Missile) सिस्टम के पुर्जों को लॉन्ग-रेंज मिसाइल सिस्टम के हिस्से के रूप में वर्गीकृत किया, जो उस समय शुल्कमुक्त श्रेणी में आते थे. इस कथित गड़बड़ी से कंपनी ने 10 प्रतिशत आयात शुल्क और 18 प्रतिशत स्थानीय कर देने से बचाव किया.

जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि डीआरआई ने मार्च 2025 में अडानी डिफेंस के आयात दस्तावेज़ों की समीक्षा शुरू की थी. जांच के दौरान कुछ अधिकारियों ने माना कि आयात वर्गीकरण में त्रुटि हुई है, लेकिन कंपनी ने इसे “अनजाने में हुई गलती” बताया. हालांकि, सरकारी सूत्रों के मुताबिक, यदि आरोप साबित होते हैं तो कंपनी को बकाया कर के साथ 100 प्रतिशत दंड (penalty) भी देना होगा, जिससे कुल देनदारी 18 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है.

अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज अडानी एंटरप्राइजेज की एक प्रमुख इकाई है, जो ड्रोन्स, मिसाइल सिस्टम और छोटे हथियारों जैसे रक्षा उपकरण बनाती है. कंपनी भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों को अपनी तकनीक उपलब्ध कराती है. अगस्त में गौतम अडानी ने कहा था कि उनके समूह के ड्रोन्स मई में पाकिस्तान के साथ सीमा संघर्ष के दौरान भारतीय सेना द्वारा इस्तेमाल किए गए थे, जिसमें दोनों पक्षों ने मिसाइल और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया था.

हालांकि, अब यही कंपनी एक नई विवादित स्थिति में आ गई है. सूत्रों का कहना है कि डीआरआई की जांच मुख्य रूप से गैर-विस्फोटक मिसाइल पुर्जों और उनके लॉन्चिंग सिस्टम से जुड़ी है, जो रूस से आयात किए गए थे. कस्टम रिकॉर्ड बताते हैं कि अडानी डिफेंस ने पिछले वर्ष से अब तक रूस से करीब 32 मिलियन डॉलर के समान पुर्जे आयात किए हैं, जबकि रूस, इज़राइल और कनाडा से कुल रक्षा-संबंधी आयात 70 मिलियन डॉलर के आसपास है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जांच में किस विशेष शिपमेंट को शामिल किया गया है.

अडानी समूह ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डीआरआई ने कस्टम नियमों की अपनी व्याख्या के आधार पर कुछ स्पष्टीकरण मांगे थे और समूह ने सभी आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत कर दिए हैं. समूह के प्रवक्ता ने कहा, “हमने सभी आवश्यक जानकारियां दी हैं और यह मुद्दा हमारी ओर से बंद माना जा चुका है.” हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि कंपनी ने किसी तरह का जुर्माना या बकाया राशि अदा की है या नहीं.

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जांच उस समय की नियमावली के तहत की जा रही है जब केवल लॉन्ग-रेंज मिसाइल पार्ट्स को शुल्कमुक्त रखा गया था. सितंबर 2025 में सरकार ने नियमों में संशोधन करते हुए सभी प्रकार के मिसाइल पार्ट्स पर आयात शुल्क छूट दे दी थी, लेकिन अडानी का यह मामला पुराने नियमों के अंतर्गत आता है. डीआरआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि “कंपनी के दावे नए नियमों पर आधारित हैं, जबकि जांच पुराने समय के आयात पर चल रही है, इसलिए छूट लागू नहीं होती.”

अडानी समूह के लिए यह पहली बार नहीं है जब उसकी किसी इकाई पर सरकारी जांच की तलवार लटकी हो. इससे पहले भी समूह को कोयला आयात के ओवर-इनवॉइसिंग (Over-invoicing) के आरोपों का सामना करना पड़ा था. राजस्व विभाग 2014 से इस मामले की जांच कर रहा है, जिसे अडानी समूह ने अदालत में चुनौती दी है. वहीं, हाल के महीनों में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अडानी समूह को शेयर मूल्य में हेरफेर (stock manipulation) से जुड़े दो मामलों में क्लीन चिट दी है, हालांकि समूह के खिलाफ दर्जन भर अन्य जांचें अब भी जारी हैं.

डीआरआई ने हाल ही में कई अन्य बड़ी कंपनियों के खिलाफ भी इसी तरह की जांच शुरू की है. इनमें सैमसंग और फॉक्सवैगन जैसी विदेशी कंपनियां शामिल हैं, जिन पर आयात टैरिफ के गलत वर्गीकरण के आरोप लगे हैं. इन दोनों कंपनियों ने आरोपों को खारिज करते हुए कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी है. अधिकारियों का कहना है कि सरकार अब ऐसी सभी कंपनियों पर कड़ी निगरानी रख रही है जो कस्टम नियमों की अस्पष्ट व्याख्या के ज़रिए कर छूट का लाभ लेने की कोशिश करती हैं.

वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इस तरह के मामलों में सख्ती इसलिए भी की जा रही है क्योंकि आयात शुल्क से संबंधित गड़बड़ियाँ न केवल राजस्व को नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि घरेलू रक्षा उद्योग को भी प्रभावित करती हैं. उन्होंने कहा, “जब बड़ी कंपनियां इस तरह की छूट लेती हैं, तो छोटे रक्षा निर्माता प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं.”

विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले का असर अडानी समूह की छवि पर पड़ सकता है, खासकर ऐसे समय में जब समूह अपनी रक्षा विनिर्माण इकाई के विस्तार की योजना बना रहा है. कंपनी भारत सरकार के “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर रक्षा” अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल है. अगर जांच में आरोप साबित होते हैं, तो यह न केवल आर्थिक रूप से बल्कि भरोसे के स्तर पर भी एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.

फिलहाल डीआरआई ने जांच को “सक्रिय” बताया है और अगले चरण में कंपनी से अतिरिक्त दस्तावेज़ और आयात डेटा मांगे जाने की संभावना है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, विभाग इस मामले में किसी जल्दबाजी में नहीं है और तथ्यों की पुष्टि के बाद ही आगे की कार्रवाई तय की जाएगी.

हालांकि अडानी समूह लगातार यह दावा करता रहा है कि उसके सभी लेनदेन पारदर्शी हैं और उसने कभी भी किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है, मगर बार-बार सरकारी एजेंसियों की जांच में नाम आने से यह सवाल फिर उठने लगा है कि भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूहों में से एक की कारोबारी पारदर्शिता कितनी मज़बूत है.

देश की रक्षा नीति के तेज़ी से विकसित होते परिदृश्य में यह मामला न केवल एक कारोबारी विवाद के रूप में बल्कि नीति निर्माण के स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है. आने वाले दिनों में डीआरआई की जांच रिपोर्ट इस पर अंतिम तस्वीर स्पष्ट करेगी कि क्या अडानी डिफेंस ने वास्तव में नियमों की सीमाओं को लांघा या यह केवल कस्टम नियमों की जटिलता का परिणाम है. फिलहाल, उद्योग जगत की निगाहें इस जांच के निष्कर्ष पर टिकी हैं, क्योंकि इसका असर न केवल अडानी समूह की साख पर बल्कि भारत के रक्षा उद्योग में निवेश की धारणा पर भी पड़ सकता है.

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