जबलपुर। मध्यप्रदेश के संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर में राजनीति का पैमाना बदल गया है। अब जनता केवल घोषणाओं या पदनाम से नहीं परखती, बल्कि जनप्रतिनिधियों के संपर्क, संवाद और डिजिटल-उपस्थितियों के तालमेल से आकलन कर रही है। जिन नेताओं ने पारंपरिक जनसंपर्क शैली को डिजिटल सक्रियता से जोड़ा है, वे जनता के दिल के सबसे करीब माने गए हैं। पलपल इंडिया टीम द्वारा किए गए इस विश्लेषण का उद्देश्य यही समझना था कि संस्कारधानी की राजनीति में कौन नेता जनता के दिल के करीब हैं, कौन निरंतर संवाद बनाए हुए हैं, और किसका सामाजिक दायरा सीमित होता जा रहा है।
यहाँ जबलपुर जिले के प्रमुख जनप्रतिनिधियों के सामाजिक सरोकार, जनसंपर्क और डिजिटल सक्रियता का क्रमवार और केंद्रित विवरण दिया गया है:
1. राकेश सिंह (लोक निर्माण मंत्री, मध्य प्रदेश शासन):
स्थिति: विश्लेषण में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर शीर्ष पर। पूर्व सांसद और वर्तमान कैबिनेट मंत्री होते हुए भी, विकास-कदम जारी रखे हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी पहचान "सुनने वाला और समाधान करने वाला" नेता की है, जो उनके मजबूत ऑफलाइन समाधान और उल्लेखनीय डिजिटल उपस्थिति (फेसबुक पर 4.55 लाख+ फ़ॉलोअर्स) के समन्वय से बनी है। फेक अकाउंट की सूचना देकर उन्होंने डिजिटल जवाबदेही भी दिखाई।
2. महापौर जगत बहादुर सिंह “अन्नू” (नगर निगम जबलपुर):
स्थिति: जनता-सेवा और जनसंपर्क के नए आयाम स्थापित किए। "इवेंट बेस्ड गवर्नेंस" मॉडल उन्हें खुला और सहज नेता बनाता है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी उपलब्धि (क्लीन एयर रैंकिंग) और सहजता का संदेश देने वाले सार्वजनिक वक्तव्य, मीडिया व सोशल प्लेटफॉर्म्स पर नियमित रूप से साझा होते हैं, जो उनके प्रशासन को संवाद मुखी बनाते हैं।
3. अशोक रोहाणी (विधायक, कैंट विधानसभा):
स्थिति: पिता की पारंपरिक शैली को आगे बढ़ाया है। धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में सहज रूप से उपस्थित रहते हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी "हमेशा उपलब्ध" नेता की छवि, सोशल मीडिया में जनता-सहभागिता और क्षेत्रीय आयोजनों के फोटो-वीडियो साझा करने से आधुनिक नेता की पहचान के रूप में मजबूत हुई है।
4. आशीष दुबे (वर्तमान सांसद):
स्थिति: सोशल मीडिया व मीडिया में उपस्थिति अच्छी है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनका सोशल मीडिया सक्रिय है, लेकिन जनसंपर्क-दायरा अपेक्षाकृत कम बताया गया है। डिजिटल उपस्थिति और प्रत्यक्ष जन-संवाद के बीच तालमेल की कमी उनकी छवि को परिपक्व होने में चुनौती दे रही है।
5. लखन घनघोरिया (कांग्रेस विधायक):
स्थिति: “जमीनी नेता” के रूप में देखे जाते हैं, जो पैदल भ्रमण और प्रत्यक्ष संवाद पर जोर देते हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी सादगी और जनता-संपर्क की निरंतरता, सोशल मीडिया पोस्टिंग (समस्या-सुनवाई व क्षेत्रीय गतिविधियां) से समर्थित है, लेकिन उनका जनाधार मुख्य रूप से जमीनी जुड़ाव पर निर्भर करता है।
6. अजय विश्नोई (वरिष्ठ विधायक, पाटन):
स्थिति: अनुभव और प्रशासनिक समझ के मामले में मजबूत हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनका सामाजिक व जनसंपर्क-दायरा सीमित रहा है। उनकी कमज़ोरी व्यापक जन-संवाद और डिजिटल संवाद दोनों में कमी है, जिससे उनका प्रभाव एक वर्ग तक सीमित रहा।
7. अभिलाष पांडेय (विधायक, मध्य विधानसभा):
स्थिति: विकास-परक कार्यों में संलग्न हैं, पर जनता-संपर्क की गति धीमी मानी गई है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: सोशल मीडिया पर योजनाओं का उल्लेख मिलता है, पर संवाद-इंटरैक्शन अपेक्षाकृत कम है, जिससे उनके सशक्त इरादों के बावजूद जन-संवाद प्रभावित हुआ है।
8. सुशील तिवारी इंदु (विधायक, पनागर विधानसभा):
स्थिति: संगठन-अनुशासन के प्रतीक माने जाते हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनका जन-संपर्क एवं सोशल मीडिया उपस्थिति सीमित रही है। उनकी डिजिटल पोस्ट अधिकतर पार्टी-गत गतिविधियों तक सीमित है, जिससे जनता-सेवा-संपर्क का व्यापक संदर्भ कम मिलता है।
9. रत्नेश सोनकर (भाजपा नगर अध्यक्ष):
स्थिति: संगठन-गत योगदान व कार्यकर्ता-संपर्क के मामले में मजबूत हैं।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: सोशल मीडिया पर उनकी छवि एक संयमित, गंभीर संगठनकर्ता की है, लेकिन उनकी सक्रियता संगठन पर केंद्रित है, न कि आम नागरिकों से प्रत्यक्ष जनसरोकार पर।
10. सौरभ शर्मा (कांग्रेस नगर अध्यक्ष):
स्थिति: युवाओं में लोकप्रिय और मैदान-स्तरीय सक्रियता उनके पक्ष में है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: सोशल मीडिया पर उनकी अभियान-प्रधान आवाज़ सुनी जाती है, पर पार्टी-कलह और वरिष्ठ नेताओं के साथ समीकरण उन्हें व्यापक जन-संवाद में पीछे रखे हैं।
11. नीरज सिंह (विधायक, बरगी विधानसभा क्षेत्र):
स्थिति: जनसंपर्क-दायरा मुख्यतः गृह-नगर बेलखेड़ा तक सीमित है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी सोशल मीडिया उपस्थिति और जन-मंच पर सक्रियता दोनों न्यूनतम रही है, जिससे उनकी जनता-सेवा-छवि कमजोर रही है।
12. संतोष बरकड़े (विधायक, सिहोरा विधानसभा):
स्थिति: जनसंपर्क व सामाजिक सरोकारों में पहचान अब तक मजबूत नहीं बन पाई है।
जनसंपर्क-डिजिटल संबंध: उनकी सोशल मीडिया-उपस्थिति न्यूनतम है, और जनता-संपर्क-दायरा अपेक्षाकृत सीधा नहीं दिखा है, जो जन-विश्वास ग्राफ में पिछड़ने का कारण बना।
जनसंपर्क और डिजिटल सक्रियता का संबंध
जबलपुर की राजनीति में जनसरोकारों की परंपरा जीवित है, लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है। यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि डिजिटल सक्रियता अब सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि जनसंपर्क का अनिवार्य विस्तार बन चुकी है।
संवाद-समाधान मॉडल की जीत: राकेश सिंह और महापौर अन्नू जैसे नेताओं ने प्रत्यक्ष समाधान-केंद्रित कार्य को निरंतर और पारदर्शी डिजिटल संवाद से जोड़कर दिखाया है कि सार्थक राजनीति कैसे की जा सकती है। उनकी उच्च विश्वसनीयता उनके मजबूत ऑफलाइन (जनसंपर्क) और ऑनलाइन (डिजिटल सक्रियता) जुड़ाव के समन्वय का परिणाम है।
समग्रता की आवश्यकता: जिन नेताओं ने केवल जमीनी संपर्क (जैसे लखन घनघोरिया) पर ध्यान दिया, या जिनकी डिजिटल उपस्थिति न्यूनतम रही (जैसे नीरज सिंह, बरकड़े, अजय विश्नोई), वे व्यापक जन-विश्वास ग्राफ में पिछड़ते जा रहे हैं।
निष्कर्ष: जबलपुर की जनता अब नेताओं का आकलन उनके द्वारा किए गए कार्य (जनसंपर्क) और उनकी उपलब्धता (डिजिटल उपस्थिति)—इन दोनों आयामों को मिलाकर कर रही है। डिजिटल खाई पाटना अब चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि जनता का निरंतर विश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
स्रोत: यह अध्ययन पलपल इंडिया के फील्ड-रिपोर्टर्स द्वारा जबलपुर-क्षेत्र में की गई बातचीत, सोशल मीडिया विश्लेषण (पोस्ट-उपस्थिति, फॉलोअर्स-अंक, फेक-अकाउंट घटनाएं) तथा मीडिया रिपोर्ट्स व Reddit-जनश्रुति पर आधारित है।
अस्वीकरण: यह प्रारंभिक अध्ययन है- इसलिए इसे अंतिम निर्णय नहीं माना जा सकता। भविष्य में विस्तृत आंकड़ों, सामाजिक सर्वेक्षणों एवं विस्तार-वार संवादों के आधार पर इस विश्लेषण को अपडेट किया जाएगा।
