पंचकूला में जो हुआ, वह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। सोमवार रात एक कार में उत्तराखंड के एक ही परिवार के सात लोगों की लाशें मिलीं। कारण—कर्ज, घाटा और टूटती उम्मीदें।
प्रवीन मित्तल, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले देहरादून में टूरिज्म का व्यवसाय शुरू किया था, धीरे-धीरे घाटे में जाते गए। न व्यवसाय बचा, न साहस। उनके साथ इस त्रासदी में उनके पिता, पत्नी, बच्चे और एक बुजुर्ग महिला ने भी जान गंवा दी।
पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पूरे मोहल्ले में सन्नाटा है, मातम है, सवाल हैं—किसी ने पहले क्यों नहीं देखा कि ये परिवार टूट रहा है?
ये घटना हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि क्या हम समय रहते किसी की मदद कर सकते हैं? क्या आर्थिक संकट में फंसे लोगों के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा तंत्र है?
सिर्फ पुलिस जांच नहीं, इस घटना को समाज, सरकार और सिस्टम को भी गहराई से देखना चाहिए।