संपादकीय: देशी मदिरा के बहाने जनता से खुलेआम वसूली, क्या प्रशासन वाकई अंधा है या जानबूझकर खामोश?




देश में जहां एक ओर महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी की कमर तोड़ रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा तय की गई अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) की भी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ताजा मामला देशी शराब की बिक्री से जुड़ा है, जहां ₹75 छपी MRP वाली शराब ₹90 में बेची जा रही है। इससे न केवल उपभोक्ताओं से अवैध वसूली हो रही है, बल्कि यह कानून का भी सीधा उल्लंघन है।


सबसे चिंता की बात यह है कि यह सब कुछ प्रशासन और आबकारी विभाग की नाक के नीचे हो रहा है, और वे चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। यह चुप्पी अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। क्या यह चुप्पी लापरवाही का नतीजा है, या फिर कोई मिलीभगत?


चलित आहते बन चुके हैं अवैध धंधे का अड्डा

गांवों और कस्बों में चल रहे चलित शराब आहते आज कानून के सामने चुनौती बन गए हैं। इनमें न तो कोई मूल्य सूची प्रदर्शित होती है, न ही ग्राहक को बिल मिलता है। सब कुछ कैश में, मनमाने दाम पर, और अधिकारियों की "अनदेखी" में होता है।


आबकारी विभाग का काम सिर्फ लाइसेंस देना नहीं, बल्कि विक्रेताओं द्वारा नियमों का पालन सुनिश्चित कराना भी है। लेकिन जब नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हों और विभाग मौन हो, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कहीं यह "मौन" संरक्षण तो नहीं?


जनता का विश्वास डगमगाने लगा है

अगर प्रशासनिक तंत्र ऐसे मुद्दों पर भी आंख मूंदे रखेगा, तो फिर आम जनता किससे न्याय की उम्मीद करे? सरकार की छवि भी ऐसे मामलों से प्रभावित होती है।


शराब जैसी संवेदनशील चीज़ का अगर मुनाफाखोरों को खुला मैदान दे दिया जाए, तो यह न सिर्फ सामाजिक दृष्टिकोण से खतरनाक है, बल्कि इससे भ्रष्टाचार और असंतोष भी बढ़ता है।


समाधान क्या है?


हर शराब दुकान पर MRP बोर्ड अनिवार्य रूप से लगाया जाए।


ग्राहकों को बिल देना अनिवार्य किया जाए।


चलित आहते की निगरानी के लिए मोबाइल निरीक्षण दल नियुक्त किए जाएं।


दोषी विक्रेताओं और लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो।


सरकार को यह समझना होगा कि न्याय सिर्फ अदालतों में नहीं, बल्कि हर दुकान, हर गली, हर गांव में होना चाहिए।

और अगर किसी भी रूप में कानून की अनदेखी होती है – तो वह लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने जैसा है।


अंकित श्रीवास्तव विचारक जबलपुर मध्यप्रदे

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