जबलपुर। मध्य प्रदेश की संस्कृति और प्रशासनिक धुरी कहे जाने वाले जबलपुर में आज एक बुनियादी सेवा – सफाई व्यवस्था – गहरे संकट में है। नगर निगम की कचरा संग्रहण गाड़ियाँ अब "अदृश्य" हो चुकी हैं। न तो तय समय पर आती हैं, न कोई पूर्व सूचना देती हैं।
लोगों की शिकायतें यह इशारा कर रही हैं कि गवर्नेंस अब संवाद-विहीन हो चला है। एक समय था जब "सीटी बजाओ, कचरा दो" का मॉडल हर मोहल्ले में सफलता से चलता था, लेकिन अब वही मॉडल ढह चुका है।
यह केवल प्रशासन की असफलता नहीं, नागरिक सहभागिता के क्षीण होने का भी संकेत है। क्या नगर निगम एक बार फिर नागरिकों को साथ लेकर व्यवस्थाओं को पटरी पर लाएगा? या फिर ये आवाजें यूँ ही गंदगी के ढेर में दबा दी जाएंगी?
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