जबलपुर का हनुमानताल और एक रेल अफ़सर एस.के.वर्मा की रहस्यमयी मौत


सुबह का वक्त था। तालाब के किनारे टहलने वाले लोगों ने देखा—पानी की लहरों के बीच एक शव तैर रहा है। बाद में पहचान हुई कि यह कोई अनजान लाश नहीं, बल्कि वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ (WCRMS) के पूर्व मंडल सचिव और हाल ही में रिटायर हुए चीफ रिज़र्वेशन सुपरवाइज़र एस.के. वर्मा का शव है।

महज़ दो महीने पहले तक वे रेलवे विभाग में सक्रिय थे, सहकर्मियों और संगठन में उनकी अच्छी पकड़ थी। इतने मिलनसार, इतने सुलझे हुए इंसान, जिनसे किसी की दुश्मनी हो ही नहीं सकती—ऐसा उनके परिचित कहते हैं। फिर सवाल उठता है—आख़िर वे हनुमानताल तक पहुँचे कैसे?

कहानी यहीं से शुरू होती है।
दो दिन पहले वे अपने सरकारी क्वार्टर—जो रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म नंबर 1 के पास है—से अचानक ग़ायब हो गए। परिजन परेशान थे, रेलकर्मी भी ढूंढ रहे थे। लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चला। शहर की भीड़-भाड़, रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और इतने लोगों की तलाश के बावजूद कोई सुराग नहीं। और अब—दो दिन बाद—उनकी लाश तालाब से निकलती है।

अब शहर में चर्चा है—क्या यह हादसा है? आत्महत्या है? या फिर कोई और वजह?
रेलवे के लोग कह रहे हैं—“वर्मा साहब तो बहुत हंसमुख थे, किसी को तकलीफ़ न देने वाले।” लेकिन सच यही है कि मौत तालाब में मिली और वजह अभी अंधेरे में है।

पुलिस ने मर्ग कायम कर लिया है, पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार है।
लेकिन सवाल यह है—जिनके साथ पूरी ज़िंदगी पटरियों और ट्रेनों की शोरगुल भरी हलचल में गुज़री, उनकी आख़िरी मंज़िल एक तालाब क्यों बना?

रेलकर्मी सकते में हैं, परिजन ग़म में डूबे हैं और जबलपुर का हनुमानताल आज एक खामोश गवाह बन गया है—एक रेल अफ़सर की आख़िरी यात्रा का।


Post a Comment

Previous Post Next Post