इंदौर. मध्यप्रदेश के लिए यह गर्व का क्षण है. इंदौर के युवा डॉक्टर और इनोवेटर डॉ. हिमांक अग्रवाल को भारत सरकार की प्रतिष्ठित योजना बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट (BIG) के तहत 50 लाख रुपये का ग्रांट प्राप्त हुआ है. यह अनुदान उन्हें उनके स्टार्टअप सॉल्वइन मेडटेक प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से लिंफेडेमा के उपचार के लिए विकसित किए जा रहे एक अभिनव चिकित्सा उपकरण के लिए मिला है. डॉ. अग्रवाल मध्यप्रदेश से इस ग्रांट के लिए चुने गए एकमात्र डॉक्टर हैं, जो इस उपलब्धि को और भी खास बनाता है.
यह सम्मान उन्हें ऐसे समय मिला है जब देश में स्वदेशी तकनीक और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नई लहर उठ रही है. डॉ. अग्रवाल और उनकी टीम ने ‘वर्वफ्लो’ नामक एक पोर्टेबल और किफायती न्यूमैटिक कंप्रेशन थेरेपी डिवाइस तैयार किया है. यह डिवाइस स्तन कैंसर के इलाज के बाद होने वाली गंभीर समस्या लिंफेडेमा के मरीजों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है. सामान्यतः यह समस्या उन महिलाओं में देखी जाती है जिन्हें सर्जरी के बाद हाथ या शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन और भारीपन महसूस होता है. मौजूदा समय में इसका उपचार महंगे उपकरणों और अस्पताल आधारित थेरेपी पर निर्भर है. ऐसे में यह डिवाइस उन मरीजों के लिए राहत का माध्यम बनेगा जो अस्पताल या क्लिनिक तक बार-बार नहीं पहुँच सकते या महंगी मशीनें नहीं खरीद सकते.
डॉ. हिमांक अग्रवाल का कहना है कि इस डिवाइस का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य सुविधाओं को हर वर्ग तक पहुँचाना है. उन्होंने कहा कि भारत में लाखों महिलाएँ स्तन कैंसर के बाद लिंफेडेमा से जूझती हैं और महंगे इलाज के कारण नियमित थेरेपी नहीं ले पातीं. हमारा लक्ष्य है कि यह डिवाइस इतनी किफायती हो कि हर घर में आसानी से इस्तेमाल किया जा सके. उनका यह प्रयास न केवल तकनीकी रूप से उन्नत है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
इस परियोजना को भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) द्वारा समर्थित किया गया है. BIG ग्रांट उन स्टार्टअप्स और इनोवेटर्स को दिया जाता है जो सामाजिक रूप से उपयोगी उच्च जोखिम वाले विचारों पर काम कर रहे हैं. यह अनुदान शोध और प्रोटोटाइप विकास के शुरुआती चरण में मदद करता है ताकि विचार वास्तविक उत्पाद के रूप में सामने आ सके. डॉ. अग्रवाल के इस नवाचार को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के स्टार्टअप इनक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर (SIIC) से तकनीकी सहयोग मिला है. इसके साथ ही किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) लखनऊ से क्लीनिकल मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है. यह सहयोग इस प्रोजेक्ट को वैज्ञानिक मजबूती प्रदान कर रहा है.
इंदौर के इस डॉक्टर की सोच केवल चिकित्सा उपकरण तक सीमित नहीं है. उनका विजन यह है कि देश की बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान स्वदेशी तकनीक से निकलें. उनका कहना है कि जब ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत है, तो चिकित्सा क्षेत्र में भी ऐसे समाधान होने चाहिए जो न केवल सस्ते हों बल्कि भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप भी हों. वर्वफ्लो डिवाइस इसका बेहतरीन उदाहरण है. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि मरीज इसे घर पर ही इस्तेमाल कर सकें और किसी विशेषज्ञ की निरंतर सहायता पर निर्भर न रहें.
डॉ. अग्रवाल के साथ उनकी टीम में रिशभ कुमार, मोहित पांडेय और दर्शान समणेकर शामिल हैं. टीम का यह प्रयास केवल तकनीकी सफलता नहीं बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा है कि कैसे युवा डॉक्टर और इंजीनियर मिलकर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में नई दिशा दे सकते हैं. उनकी यह उपलब्धि यह भी दर्शाती है कि इंदौर अब केवल स्वच्छता और उद्योग के क्षेत्र में नहीं बल्कि स्वास्थ्य नवाचार के क्षेत्र में भी देश का नेतृत्व कर रहा है.
BIG ग्रांट की यह उपलब्धि डॉ. हिमांक के लिए एक नई जिम्मेदारी भी लेकर आई है. इस फंडिंग से वे अपने प्रोटोटाइप को और बेहतर बनाएंगे, उसका क्लीनिकल ट्रायल कराएंगे और बड़े पैमाने पर उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाएंगे. यह डिवाइस न केवल भारत में बल्कि विकासशील देशों में भी उपयोगी साबित हो सकता है, जहाँ सस्ती चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी है.
डॉ. हिमांक ने कहा कि यह सफलता केवल मेरी नहीं, बल्कि उन सभी भारतीय शोधकर्ताओं और मरीजों की है जो सस्ती और सुलभ चिकित्सा का सपना देखते हैं. यह ग्रांट हमारे विजन को आगे बढ़ाने का अवसर है ताकि हम समाज के उन वर्गों तक पहुँच सकें जो अब तक आधुनिक स्वास्थ्य तकनीक से वंचित रहे हैं.
उनकी यह उपलब्धि मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ा गौरव है. प्रदेश के चिकित्सा और विज्ञान जगत के लोगों का मानना है कि डॉ. अग्रवाल ने जो रास्ता दिखाया है, वह आने वाले समय में राज्य के अनेक युवाओं को स्वास्थ्य नवाचार के क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रेरित करेगा. इंदौर जैसे शहर से निकला यह इनोवेशन यह संदेश देता है कि अब नवाचार केवल मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं रहा.
लिंफेडेमा जैसी बीमारियाँ भले ही आम चर्चा में न हों, लेकिन यह महिलाओं की जीवन गुणवत्ता पर गहरा असर डालती हैं. इस समस्या से राहत दिलाने के लिए जब एक स्वदेशी, सस्ता और उपयोग में आसान उपकरण सामने आएगा तो यह केवल चिकित्सा उपलब्धि नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना का विस्तार भी होगा. यही इस परियोजना की असली सफलता होगी.
भारत सरकार द्वारा दिया गया यह ग्रांट केवल एक आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि उस सोच का सम्मान है जो स्वास्थ्य को अधिकार मानती है, सुविधा नहीं. डॉ. हिमांक अग्रवाल और उनकी टीम का यह प्रयास आने वाले वर्षों में ‘मेक इन इंडिया’ की भावना को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा. इंदौर का यह युवा डॉक्टर आज न केवल अपने शहर का बल्कि पूरे प्रदेश का गौरव बन गया है. उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर नीयत सही हो और सोच समाज के हित में हो, तो एक विचार भी देश का चेहरा बदल सकता है.
इंदौर की इस सफलता की कहानी बताती है कि नवाचार के बीज किसी भी मिट्टी में पनप सकते हैं, बस आवश्यकता है समर्पण और जनसेवा की भावना की. डॉ. हिमांक अग्रवाल का यह कदम आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेगा और शायद यही वह क्षण है जब इंदौर ने स्वास्थ्य नवाचार के क्षेत्र में भी अपनी पहचान दर्ज करा दी है.
