JDU में ‘बागी’ की वापसी, प्रशांत किशोर का तेजस्वी पर वार, NDA ने दरारों से किया इनकार


 पटना. बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है. विधानसभा चुनावों की तारीख़ नज़दीक आते ही राज्य की सियासी ज़मीन पर हलचल बढ़ गई है. जो नेता कल तक एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी कर रहे थे, वे अब मंच साझा कर रहे हैं. तो कहीं पुराने साथी बगावती तेवर दिखा रहे हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में रणनीतिक चालें, आरोप-प्रत्यारोप, और अप्रत्याशित घटनाओं ने चुनावी हवा में उत्सुकता और अनिश्चितता का पारा चढ़ा दिया है.

शनिवार को जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए अपने पुराने सहयोगी और कभी नीतीश कुमार के आलोचक रहे पूर्व सांसद अरुण कुमार को पार्टी में दोबारा शामिल कर लिया. यह वही अरुण कुमार हैं, जिन्होंने कभी नीतीश कुमार पर तीखे हमले किए थे और यहां तक कहा था कि वे मुख्यमंत्री की “पसलियां तोड़ देंगे”. लेकिन राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता, यह तस्वीर शनिवार को साफ दिखी, जब अरुण कुमार को जदयू कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ‘ललन’ और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की मौजूदगी में पार्टी में वापस शामिल किया गया. अरुण कुमार की वापसी को जदयू के लिए रणनीतिक कदम माना जा रहा है, ताकि उनके पुराने प्रभाव क्षेत्र जहानाबाद और मगध इलाके में पार्टी की पकड़ मजबूत की जा सके.

अरुण कुमार ने 1999 में जदयू से जहानाबाद लोकसभा सीट जीती थी, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी से अलग होकर उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी में शामिल हो गए. 2014 में उन्होंने उसी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी. हालांकि, इसके बाद दोनों नेताओं में मतभेद हुए और अरुण कुमार ने अपनी अलग पार्टी ‘भारतीय सब लोग पार्टी’ बना ली, जो 2020 के विधानसभा चुनाव में कोई खास असर नहीं छोड़ सकी. उनकी वापसी ऐसे वक्त में हुई है जब जहानाबाद के ही एक और भूमिहार नेता राहुल शर्मा ने जदयू छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया है. राहुल शर्मा के पिता जगदीश शर्मा बिहार की राजनीति में बड़ा नाम रहे हैं, जिन्होंने घोसी विधानसभा सीट से आठ बार चुनाव जीता और 2009 में जदयू के टिकट पर जहानाबाद से सांसद बने थे.

राजनीतिक समीकरणों के इस फेरबदल के बीच विपक्षी महागठबंधन में भी हलचल है. शुक्रवार को तेजस्वी यादव के आवास पर हुए एक कार्यक्रम में राहुल शर्मा ने औपचारिक रूप से आरजेडी जॉइन की. इस मौके पर तेजस्वी यादव ने कहा कि उनकी पार्टी समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है. वहीं एनडीए खेमे में सीट बंटवारे को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं, लेकिन बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने अफवाहों पर विराम लगाते हुए कहा कि सबकुछ ठीक है और रविवार सुबह 11 बजे एनडीए की ओर से महत्वपूर्ण घोषणा की जाएगी. उन्होंने कहा कि सीट शेयरिंग और उम्मीदवारों की सूची पर अंतिम निर्णय पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा.

एनडीए के अन्य सहयोगियों में भी हलचल है. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलएम) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बातचीत अभी जारी है और मीडिया में चल रही खबरें भ्रामक हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “बातचीत पूरी नहीं हुई है. अफवाहें फैलाना धोखा है.” दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्री और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी सम्मानजनक सीटें मिलने की उम्मीद रखती है. मांझी ने स्पष्ट किया कि अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो उनकी पार्टी चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन एनडीए का हिस्सा बनी रहेगी. इसी बीच, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने भी अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटों की मांग की है. सूत्रों के अनुसार, जदयू और भाजपा क्रमशः 102 और 101 सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं, जबकि अन्य सहयोगियों के बीच शेष सीटों का बंटवारा होगा.

उधर, चुनावी माहौल में राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज़ हो गई है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि आरजेडी नेता अपने विधानसभा क्षेत्र राघोपुर से हारेंगे. किशोर ने कहा, “राघोपुर की जनता अब परिवारवाद से मुक्त होना चाहती है. वर्षों से वहां सिर्फ एक परिवार का राज रहा है, लेकिन इलाके में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. जनता बदलाव चाहती है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनकी पार्टी की केंद्रीय समिति रविवार को बैठक करेगी, जहां राघोपुर से उम्मीदवार पर निर्णय लिया जाएगा. जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या वे खुद चुनाव लड़ेंगे, तो किशोर ने मुस्कराते हुए कहा, “निर्णय पार्टी लेगी, लेकिन तेजस्वी यादव की हार तय है.”

किशोर ने तेजस्वी के दो सीटों से चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर कहा, “भले ही वे दो जगह से चुनाव लड़ें, पर राघोपुर में उनका हाल राहुल गांधी जैसा होगा, जो 2019 में अमेठी से हार गए थे.” उन्होंने भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह से जुड़े सवाल पर कहा कि पवन उनके निजी मित्र हैं और वे उनके पारिवारिक विवादों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं. यह बयान तब आया जब पवन सिंह की पत्नी ज्योति हाल ही में प्रशांत किशोर से मिली थीं.

किशोर ने अपनी पार्टी में टिकट बंटवारे से जुड़ी असंतुष्टि पर भी कहा कि यह स्वाभाविक है. “हजारों लोगों ने जन सुराज पार्टी को बनाने में अपना खून-पसीना बहाया है. सभी को टिकट देना संभव नहीं, लेकिन हम लोकतांत्रिक दल हैं, संवाद के लिए दरवाज़े हमेशा खुले हैं.”

इसी बीच, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में तीसरा मोर्चा खड़ा करने की घोषणा की है. ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी इस बार बिहार की लगभग 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी — जो पिछली बार से पांच गुना अधिक है. एआईएमआईएम ने 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीती थीं, जिनमें से चार विधायक बाद में आरजेडी में शामिल हो गए थे. ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार में भाजपा-एनडीए और कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन के विकल्प के रूप में उभरना चाहती है. विपक्षी दलों का आरोप है कि ओवैसी की पार्टी “बीजेपी की बी-टीम” बनकर सेक्युलर वोटों में सेंध लगाती है, हालांकि ओवैसी इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं.

राजनीति के इस शोरगुल के बीच चुनाव आयोग की तैयारियां भी जारी हैं. राज्य भर में प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जा रहे हैं और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बैठकों का दौर चल रहा है. 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा और मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी. राज्य की जनता अब उत्सुकता से देख रही है कि इस बार के चुनावी मैदान में कौन किसके साथ खड़ा होता है और कौन किसे मात देता है.

बिहार की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित मोड़ों और गठबंधनों की भूमि रही है. इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. पुराने दुश्मन अब साथी बन रहे हैं, और पुराने साथी एक-दूसरे पर वार कर रहे हैं. एक तरफ एनडीए अपने मतभेदों को “अफवाह” बताकर एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी ओर विपक्षी खेमे में भी उम्मीदवारों की दौड़ और टिकट की रस्साकशी जोरों पर है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव की घंटी बजते ही बिहार फिर से राजनीतिक रंगमंच बन चुका है, जहां हर किरदार अपनी स्क्रिप्ट खुद लिख रहा है और दर्शक — यानी जनता — अब बस मंच पर आने वाले अगले दृश्य का इंतजार कर रही है.

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