जबलपुर। समूचे मध्य प्रदेश के सरकारी गलियारों में एक नया घोटाला सन्नाटा पैदा कर चुका है, जिसकी जड़ें सीधे जबलपुर के बाजार तक पहुँची हैं। यह मामला केवल 6 लाख रुपये के चावल का नहीं है, यह मामला है गरीबों के पेट पर मारे गए डाके का, जिसके तहत शहडोल से खंडवा भेजे जा रहे लगभग 300 क्विंटल सार्वजनिक वितरण प्रणाली के चावल को गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही रास्ते में गायब कर दिया गया और चुपके से जबलपुर के खुले बाजार में बेच दिया गया। इस पूरे आपराधिक कृत्य में तीन शातिर व्यक्तियों की गिरफ्तारी ने प्रदेश की खाद्यान्न वितरण श्रृंखला पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और अब पुलिस की जांच की सुई आपूर्ति और भंडारण तंत्र से जुड़े बड़े नामों की ओर मुड़ चुकी है।
जानकारी के अनुसार, यह सरकारी चावल की खेप राज्य नागरिक आपूर्ति निगम (NACS) के माध्यम से भेजी जा रही थी, जिसका मुख्य उद्देश्य खंडवा जिले के गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों तक पहुँचना था। लेकिन ट्रांसपोर्टर और कुछ स्थानीय बिचौलियों की मिलीभगत से इस पूरे ट्रक को बीच रास्ते में ही रोक लिया गया। जबलपुर पुलिस को मिली गोपनीय सूचना के आधार पर, जब रांझी क्षेत्र में एक निजी गोदाम पर छापा मारा गया, तो अधिकारी खुद दंग रह गए। जिस चावल को खंडवा की राशन दुकानों तक पहुँचना था, वह यहाँ बोरियों से निकालकर ब्रांडेड कंपनियों के कट्टों में भरा जा रहा था, ताकि उसे खुले बाजार में बेचा जा सके और गरीबों का हक मारकर मोटा मुनाफा कमाया जा सके। पुलिस अधीक्षक (SP) के निर्देश पर गठित विशेष टीम ने तत्काल कार्रवाई करते हुए न केवल चावल से लदे ट्रक को जब्त किया, बल्कि मौके से तीन प्रमुख आरोपियों को भी धर दबोचा। गिरफ्तार आरोपियों में मुख्य रूप से वह ट्रांसपोर्टर शामिल है, जिसे शहडोल से चावल खंडवा सुरक्षित पहुँचाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके साथ ही, स्थानीय गोदाम मालिक और एक बिचौलिए को भी पकड़ा गया है, जो इस सरकारी चावल को बाजार में खपाने की फिराक में थे। सूत्रों की मानें तो, यह बिचौलिया पहले भी सरकारी आपूर्ति से जुड़े संदिग्ध मामलों में शामिल रहा है। जांच में पता चला है कि चावल की बोरियों पर लगी सरकारी मुहरों को बहुत सफाई से बदला जा रहा था। आरोपियों ने कबूल किया है कि इस काम के लिए उन्होंने एक खास गिरोह बना रखा था, जो पिछले कई महीनों से सरकारी खाद्यान्न को गंतव्य से पहले ही डाइवर्ट करने के धंधे में लगा हुआ था। यह चावल खुले बाजार में ₹20 से ₹25 प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाना था, जबकि PDS के तहत इसे ₹3 प्रति किलोग्राम की सब्सिडी दर पर गरीबों को मिलना था। यह सीधे-सीधे जनता के पैसे और उनके बुनियादी अधिकार का घोर उल्लंघन है।
इस घटना के बाद, जबलपुर के नागरिक आपूर्ति विभाग में हड़कंप मच गया है। सवाल उठ रहे हैं कि सरकारी माल को ट्रैक करने वाला GPS सिस्टम और विभागीय जांच प्रक्रिया कहाँ चूक गई? क्या यह घोटाला केवल ₹6 लाख का है, या फिर यह हिमखंड का सिरा मात्र है, जिसके नीचे कई करोड़ों का काला कारोबार छिपा है? क्या यह पहली बार हुआ है कि कोई ट्रांसपोर्टर इतने बड़े पैमाने पर सरकारी अनाज को रास्ते में ही बेच देता है? इन सवालों ने आम जनता में गहरी जिज्ञासा और रोष पैदा कर दिया है। सोशल मीडिया पर लोग मांग कर रहे हैं कि इस मामले की जांच को केवल जबलपुर तक सीमित न रखा जाए, बल्कि शहडोल से लेकर खंडवा तक के सभी परिवहन रिकॉर्ड्स और विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी गहनता से जांच की जाए। पुलिस अब इस बात की भी तहकीकात कर रही है कि इस घोटाले में नागरिक आपूर्ति निगम के किसी बड़े अधिकारी या कर्मचारी की संलिप्तता तो नहीं है, जिसने चावल की खेप डाइवर्ट करने में अंदरूनी मदद की हो। आशंका है कि यह पूरा रैकेट एक राज्यव्यापी सिंडिकेट का हिस्सा हो सकता है, जो अक्सर सरकारी अनाज को डायवर्ट कर कालाबाजारी करता है।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए एक उच्च-स्तरीय जांच समिति गठित करने का आदेश दिया है, जो 72 घंटे के भीतर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपेगी। जबलपुर पुलिस की यह कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती इस पूरे नेक्सस को तोड़ना और यह सुनिश्चित करना है कि गरीबों के लिए आवंटित एक-एक दाना सही व्यक्ति तक पहुँचे। यह गिरफ्तारी एक शुरुआत भर है, अब देखना यह है कि पुलिस की जांच की जाल में और कितने बड़े 'मगरमच्छ' फँसते हैं। जनता की आँखें अब प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं, क्योंकि यह मामला न केवल भ्रष्टाचार का है, बल्कि भूखे पेट पर पड़े सबसे दर्दनाक प्रहार का भी है।
