अहमदाबाद एयर इंडिया विमान हादसे ने न केवल कई जिंदगियां छीनीं, बल्कि कई परिवारों को इंतज़ार और अनिश्चितता की आग में झोंक दिया। दीपक पाठक का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
हादसे के आठ दिन बाद तक दीपक का शव परिजनों को नहीं मिल सका—क्यों? डीएनए की जांच में तकनीकी अड़चन, बहनों की रिपोर्ट से मेल न खाना और अंततः माता-पिता के सैंपल से पुष्टि होना—इस प्रक्रिया ने जांच तंत्र की लापरवाही उजागर कर दी।
सवाल उठता है कि क्या हादसों में मृतकों के परिजनों को बेहतर और तेज़ पहचान व्यवस्था नहीं मिलनी चाहिए?
शनिवार को बदलापुर में दीपक का अंतिम संस्कार तो हुआ, लेकिन पीछे छोड़ गया एक ऐसा सवाल जो हर यात्री और परिवार के लिए अहम है—हादसे के बाद की व्यवस्था क्या वाकई संवेदनशील है?
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