जहां बच्चों को संरक्षण मिलना चाहिए, वहां शोषण हो रहा है। जहां बुजुर्गों को विश्राम मिलना चाहिए, वहां उन्हें भीख के लिए सड़कों पर भेजा जा रहा है।
सागर का ‘घरौंदा आश्रम’ इस वक्त सवालों के घेरे में है। राज्य बाल आयोग की रिपोर्ट सिर्फ कागज नहीं, बल्कि समाज की संवेदनहीनता की दस्तावेज़ बन चुकी है।
यदि यह सच है कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को चौराहों पर उतारा गया, तो यह सिर्फ़ कानून नहीं, हमारी सामाजिक आत्मा का भी अपमान है।
क्या समाज और प्रशासन अब भी चुप रहेगा?
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