छोटे-छोटे गांवों से उठी बड़ी आवाजें आज पूरे जिले में गूंज रही हैं। “हम रुकते हैं जहां जनता बुलाती है, लेकिन अफसर कहते हैं नियम तोड़ रहे हो।” बस ड्राइवर की यह पीड़ा गांव-गांव तक पहुंच चुकी है।
10 जुलाई की सुबह जब गांवों से सैकड़ों श्रद्धालु गुरुपूर्णिमा पर जामसावरी या सिमरिया निकलने को तैयार थे, तब अचानक खबर आई — “बसें नहीं चलेंगी!”
ग्रामीणों ने बैलगाड़ी, ट्रैक्टर और मोटरसाइकिलों से जाने का जुगाड़ किया, पर जो नहीं जा सके, उनके लिए यह दिन खाली रह गया।
बस ऑपरेटरों का कहना है कि जब तक स्थाई बस स्टॉप तय नहीं होते और चालान रोके नहीं जाते, तब तक वे बसें नहीं चलाएंगे। यह बात आम आदमी भी समझ रहा है — “सरकार खुद कहती है रुकना गलत है, लेकिन रुकने की जगह ही नहीं बताती!”
ग्रामीणों के लिए बस सिर्फ यात्रा का साधन नहीं, जीवन की धुरी है। आज वह धुरी टूट गई है। सवाल अब यह है कि क्या कोई सुनेगा?
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