दमोह के लकलका गांव में बुधवार रात जो हुआ, वह गांव के बुजुर्गों के लिए चौंकाने वाला नहीं था। बरसों से सुनते आए हैं — “जब नदिया चढ़े, तब पांव नहीं बढ़ाते।” पर शायद अब पुराने ज्ञान को कोई सुनता नहीं।
अमित ट्रैवल्स की बस रोज की तरह झापन होते हुए झलोन जा रही थी। बरसात में कुड़ी नाला उफान पर था। गांव वालों ने चेताया, कहा—“आज मत निकलो”। लेकिन चालक का आत्मविश्वास भारी पड़ा।
एक घंटे इंतजार के बाद वह बस को पुल पर ले गया। पानी तेज था, बस बहाव में उतर गई। यात्रियों की जान पर बन आई। पुल पर खड़े ग्रामीणों ने खुद भागकर मदद की।
अगर वे लोग नहीं होते, तो शायद आज गांव में चूल्हे नहीं जलते।
पुल पर अभी भी कोई बैरिकेड नहीं है। अगली बार कौन बचाएगा?
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