केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी बोले फिल्मों में लौटना चाहता हूं आय का स्रोत पूरी तरह बंद हो गया


केरल के एकमात्र भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने खुलकर कहा है कि वे दोबारा फिल्मों में लौटना चाहते हैं, क्योंकि मंत्री बनने के बाद उनकी आमदनी पूरी तरह बंद हो गई है. गोपी, जो मलयालम सिनेमा के चर्चित नामों में से एक हैं, ने स्वीकार किया कि राजनीति में आने के बाद उन्होंने आर्थिक रूप से खुद को मुश्किल स्थिति में पाया है और अब वे अपने अभिनय करियर को फिर से शुरू करना चाहते हैं.

कन्नूर में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सुरेश गोपी ने कहा कि वे अभिनय को बेहद मिस करते हैं और राजनीति के साथ अपने फिल्मी जीवन को भी जारी रखना चाहते हैं. उन्होंने साफ कहा, “मैं वास्तव में अभिनय जारी रखना चाहता हूं. मुझे अधिक कमाई की जरूरत है, क्योंकि मेरी आय अब पूरी तरह रुक गई है.”

थ्रिसूर से सांसद और पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं पर्यटन राज्यमंत्री सुरेश गोपी ने कहा कि वे कभी भी मंत्री बनने की इच्छा नहीं रखते थे. उन्होंने बताया कि चुनाव से एक दिन पहले ही उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि वे मंत्री पद नहीं चाहते, बल्कि अपने फिल्मी करियर को जारी रखना चाहते हैं. उनका कहना है कि पार्टी ने शायद जनादेश के सम्मान में उन्हें मंत्री बनाया. “मैंने कभी फिल्मों को छोड़कर राजनीति में मंत्री बनने की इच्छा नहीं की थी,” उन्होंने कहा.

सुरेश गोपी ने अपने बयान में यह भी सुझाव दिया कि उनकी जगह किसी और को मंत्री बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा, “मैं पूरी ईमानदारी से कहता हूं कि सी सदानंदन मास्टर को मंत्री बनाया जाए और मुझे हटा दिया जाए. मुझे लगता है यह केरल की राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय साबित होगा.”

सदानंदन मास्टर भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं जिन्हें इस साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए नामित किया था. वे राजनीतिक हिंसा के शिकार रहे हैं और 1994 में सीपीएम कार्यकर्ताओं के हमले में उन्होंने दोनों पैर खो दिए थे. गोपी का यह सुझाव उनके विनम्र और आत्मनिरीक्षणात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो राजनीति में दुर्लभ माना जाता है.

हालांकि, सुरेश गोपी के इस बयान ने भाजपा के भीतर और बाहर चर्चा का माहौल बना दिया है. एक ओर जहां उनके प्रशंसक इसे उनकी ईमानदारी और सादगी के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे असंतोष का संकेत भी मान रहे हैं. केरल में भाजपा की सीमित उपस्थिति के बावजूद सुरेश गोपी ने 2024 लोकसभा चुनाव में थ्रिसूर से जीत हासिल की थी, जिससे पार्टी को राज्य में नई उम्मीद मिली थी.

गोपी ने कहा कि वे अपने फिल्मी करियर और राजनीतिक दायित्वों को संतुलित करना चाहते हैं. उनका कहना है कि राजनीति उनकी जिम्मेदारी है, लेकिन अभिनय उनकी आत्मा के करीब है. “फिल्में मेरी पहचान हैं. मैं राजनीति से दूर नहीं जाना चाहता, लेकिन मैं सिनेमा को भी नहीं छोड़ सकता,” उन्होंने कहा.

केंद्रीय मंत्री के रूप में गोपी ने यह भी स्वीकार किया कि पद मिलने के बाद उन्होंने आर्थिक रूप से कठिनाई का सामना किया. उनका कहना है कि अभिनय छोड़ने के बाद से उनकी आय पूरी तरह बंद हो गई है और अब वे फिर से काम करना चाहते हैं ताकि आर्थिक स्थिरता बनाए रख सकें.

पिछले कुछ महीनों में गोपी कई बार अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. हाल ही में उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को “प्रजा” कहकर संबोधित किया था, जिस पर विरोधियों ने उन्हें घेर लिया था. इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. ‘प्रजा’ और ‘प्रजातंत्र’ जैसे शब्द अपमानजनक नहीं हैं. जैसे सफाईकर्मियों को पहले ‘मैनुअल स्कैवेंजर’ कहा जाता था, अब उन्हें ‘सैनिटेशन इंजीनियर’ कहा जाता है. उसी तरह ‘प्रजा’ शब्द भी सम्मानजनक है.”

उनका यह तर्क बताता है कि वे न केवल राजनीति में सक्रिय हैं बल्कि भाषा और शब्दों की मर्यादा को लेकर भी सजग हैं. गोपी का कहना है कि मीडिया और विरोधी दल उनके बयानों को गलत संदर्भ में पेश कर रहे हैं ताकि उनकी छवि को धूमिल किया जा सके.

सुरेश गोपी ने 2016 में भाजपा ज्वाइन की थी और तब से पार्टी के लिए दक्षिण भारत में चेहरा बने हुए हैं. उनके अभिनय करियर की बात करें तो उन्होंने मलयालम फिल्मों में कई यादगार किरदार निभाए हैं. “कंठावू”, “लल सलाम” और “क्लासमेट्स” जैसी फिल्मों से उन्होंने अपनी लोकप्रियता बनाई. वे 90 के दशक के सबसे चर्चित एक्शन सितारों में से एक रहे हैं और केरल में उनकी एक मजबूत फैन फॉलोइंग है.

भाजपा के लिए केरल जैसे राज्य में जहां पारंपरिक तौर पर कम समर्थन रहा है, सुरेश गोपी की मौजूदगी एक सांस्कृतिक और राजनीतिक सेतु के रूप में देखी जाती है. पार्टी ने उम्मीद की थी कि उनके जरिए सिनेमा और समाज के बीच जुड़ाव मजबूत होगा. हालांकि अब जब मंत्री पद के बावजूद वे अभिनय में लौटने की इच्छा जता रहे हैं, तो यह भाजपा नेतृत्व के लिए एक नई चुनौती भी बन सकता है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गोपी का यह बयान केवल व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि दक्षिण भारत में भाजपा नेताओं के सामने आने वाली सीमाओं का भी संकेत है. एक वरिष्ठ विश्लेषक ने कहा, “सुरेश गोपी जैसे लोकप्रिय चेहरे पार्टी के लिए संपत्ति हैं, लेकिन जब वे आर्थिक दबाव और करियर की जटिलताओं का सामना करते हैं, तो यह दर्शाता है कि राजनीति और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन कितना कठिन है.”

फिलहाल सुरेश गोपी के इस बयान पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि सूत्रों का कहना है कि पार्टी गोपी को फिल्में करने की अनुमति देने पर विचार कर सकती है, बशर्ते इससे उनकी मंत्री के रूप में जिम्मेदारियों पर असर न पड़े.

सुरेश गोपी ने अंत में कहा कि उनका उद्देश्य राजनीति छोड़ना नहीं है, बल्कि दोनों क्षेत्रों में ईमानदारी से योगदान देना है. “मैंने देश की सेवा करने का प्रण लिया है, लेकिन मैं अपने कला जीवन को भी मरने नहीं देना चाहता,” उन्होंने कहा.

उनका यह बयान बताता है कि राजनीति और कला के बीच सेतु बनाना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं. सुरेश गोपी की यह ईमानदार स्वीकारोक्ति न केवल उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों को उजागर करती है बल्कि राजनीति में मानवीय पहलू को भी सामने लाती है—जहां एक कलाकार, मंत्री बनने के बाद भी, अपने दिल की पुकार को दबा नहीं पाता. 

Post a Comment

Previous Post Next Post