"कैलेंडर में तारीख बढ़ी, जवाबदेही कौन लेगा?"

 


हिमाचल भाजपा का 2025 का कैलेंडर एक अद्भुत प्रशासनिक चूक का नमूना बन गया है। 31 जून जैसी गैर-मौजूद तारीख का उल्लेख न केवल एक प्रिंटिंग एरर है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि योजनाओं के प्रचार में विवरण और सटीकता की कितनी उपेक्षा हो रही है।
राज्य सूचना विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा – “ऐसी गलती से न सिर्फ संगठन की छवि धूमिल होती है, बल्कि जनसंपर्क का भरोसा भी कमजोर होता है।”
प्रश्न यह भी है कि क्या इस चूक पर भाजपा संगठन ने आंतरिक समीक्षा की है? या फिर यह मान लिया गया कि लोग तो हँसकर भूल जाएंगे?
जनता अब ज्यादा सचेत है – और वह ऐसी गलतियों को केवल 'भूल' नहीं मानती, बल्कि 'लापरवाही' का नाम देती है।

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